क्रिमिनल साइकोपैथी: मानसिक विकृति या खतरनाक अपराध की चेतावनी मनोवैज्ञानिक श्वेता जॉनसन

पूर्वा टाइम्स समाचार

गोरखपुर। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में हाल ही में घटित एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। एक 35 वर्षीय युवक ने शराब के लिए पैसे न मिलने पर अपनी 65 वर्षीय मां की निर्मम हत्या कर दी और फिर उसके शरीर के अंगों को पका कर खा गया। यह घटना केवल एक आपराधिक कृत्य नहीं, बल्कि एक गहरे मानसिक विकार की ओर इशारा करती है, जिसे मनोविज्ञान में “क्रिमिनल साइकोपैथी” कहा जाता है।

क्या होती है क्रिमिनल साइकोपैथी?
क्रिमिनल साइकोपैथी एक प्रकार का व्यक्तित्व विकार होता है, जिसमें व्यक्ति में संवेदना की कमी, अपराधबोध न होना, और दूसरों को शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुँचाने में संतोष अनुभव करना जैसी प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं। ऐसे व्यक्ति आमतौर पर बेहद चालाक, परंतु भीतर से असंवेदनशील होते हैं।
क्यों बनता है कोई साइकोपैथ?
• बचपन में हिंसा या शोषण
• मस्तिष्क के फ्रंटल लोब में असामान्यता
• नशे की लत
• भावनात्मक उपेक्षा
• समाज से अलगाव और अवसाद
इन सभी कारकों का मिश्रण किसी व्यक्ति को धीरे-धीरे अपराध की ओर धकेल सकता है, जिसमें उसे दूसरों के जीवन की कोई कीमत नहीं लगती।
क्या कहती है न्याय व्यवस्था?
इस प्रकार की घटनाओं को भारतीय न्याय प्रणाली में “दुर्लभतम में दुर्लभ” की श्रेणी में रखा जाता है, जहाँ अपराध की क्रूरता और असामान्यता को देखते हुए फांसी तक की सज़ा दी जा सकती है।
ज़रूरत है समय पर मानसिक जांच की
इस घटना ने एक बार फिर इस ओर ध्यान दिलाया है कि मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज़ करना कितना खतरनाक हो सकता है। यदि ऐसे लक्षणों को समय रहते पहचाना जाए और सही परामर्श दिया जाए, तो शायद कई जिंदगियां बच सकती हैं।
क्रिमिनल साइकोपैथी कोई काल्पनिक बीमारी नहीं, बल्कि समाज में मौजूद एक वास्तविक मानसिक विकृति है, जिसे गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। केवल सज़ा से समाधान नहीं निकलेगा, हमें मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना होगा ताकि ऐसे खतरनाक अपराधों की जड़ पर चोट की जा सके।

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