इंसान हुं,बेजान सा सितारा तो नहीं हुं, मजबूर सही, वक्त से हारा तो नही हूं
पूर्वा टाईम्स – डॉ अनिल गौतम

गोरखपुर। युवा कवियों में अपने समय की पीड़ा एवं अन्तर्द्वन्द्व को देखने का बहुत सूक्ष्म नज़रिया है, इनका एक शेर जितना प्रभाव रखता है उतना एक विस्तृत गद्य नहीं रख सकता। पूर्वांचल में वर्तमान साहित्य एवं संस्कृति की असली पहचान कराने की दृष्टि से अभिव्यक्ति की गतिविधियाँ महत्वपूर्ण हैं” ये बातें अभिव्यक्ति की काव्य-विचार गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे वर्धा अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने कहीं। नर्वदेश्वर सिंह मास्टर साहब की अध्यक्षता एवं शशिविन्दु नारायण मिश्र के कुशल संचालन में आयोजित गोष्ठी की मेजबानी संस्थाध्यक्ष डा. जय प्रकाश नायक ने अपने चिलमापुर स्थित आवास पर की। काव्यगोष्ठी मे सत्यशील राम त्रिपाठी ने तेवरी शुरुआत की -जितना होगा झूठ का, पूजन और प्रचार,उतना होगा सत्य फिर, लड़ने को तैयार। सलीम मज़हर ने दिलकश समां बाँधा – तेरी ख़ामोशियों ने मुझे, दे दिया है मुकम्मल जवाब,
तेरी आँखों की गहराई में, मुझको सबकुछ नज़र आ गया।
आकृति विज्ञा अर्पण की बहुव्यंजक जनवादी उपस्थिति ने विस्मित किया -बड़हल बारह रुपये किलो, आम की क़ीमत सत्तर है, हैरत है जब एक साथ ही, दोनों निकले बाग़ों से।
दोहाकार कृष्णा श्रीवास्तव ने कविता को पारिभाषित किया –
कवि के मन की कल्पना, ले विस्तृत आकार,शब्दों से करती सदा, सपनों को साकार। प्रियंका दुबे प्रबोधिनी की प्रथम उपस्थिति ने भावुक किया – हाथ की मेंहदी न छूटी, साथ क्यों छूटा तुम्हारा, लौट आओ तुम दुबारा।सशक्त समकालीन कवि हिमांशु सहुलियार ने कहा जाने कब हाथ से / फिसल गया समय /साबुन की तरह / बालों पर सफ़ेदी छा गई।वसीम मज़हर गोरखपुरी ने मकबूल शे’र पढ़े -हमको ख़ामोश ही रहने दो, हमें मत छेड़ो हम जो बोले तो कई चेहरे उतर जायेंगे। सृजन गोरखपुरी ने ग़ज़ल को सँवारा – ख़ार खिलकर गुलाब हो जाए आप गर सिर्फ़ इक नज़र कर दें।
डा. चेतना पाण्डेय ने सुपरिचित ऊँचाई दी -कभी जब समय तुमको सागर बना दे नहीं भूल जाना नदी का समर्पण
सिद्दीक़ मजाज़ ने उर्दू का प्रतिनिधित्व किया – इंसान हूँ, बेजान सितारा तो नहीं हूँ मजबूर सही, वक़्त से हारा तो नहीं हूँ।वीरेन्द्र मिश्र दीपक ने बाज़ार को बेनक़ाब किया – आनलाइन खरीदारी, आनलाइन बीलिंग है, फेसबुकिया रिश्तों में आफलाइन फीलिंग है। उस्ताद शायर सरवत जमाल ने आदमी की दोरंगी पर तंज किए – सीधा है कि चालाक, दिखाई नहीं देता इंसां है ख़तरनाक, दिखाई नहीं देता। संस्थाध्यक्ष डा. जय प्रकाश नायक का प्रतिनिधि नवगीत रहा -ये नदी किस ओर जाए, क्या पता।उपरोक्त के अलावा डा. कनकलता मिश्रा, डा. हिमांशु पाण्डेय, जगदीश खेतान, हृदयेश तिवारी, शुभम पाण्डेय गुलशन, फुरकान फ़रहत आदि रचनाकारों ने अपनी रचनाओं द्वारा काव्यक्रम को समृद्ध बनाया. रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी ने गोष्ठी के प्रति विचार व्यक्त किए. अध्यक्षता कर रहे नर्वदेश्वर सिंह मास्टर साहब ने इस उत्कृष्ट काव्य संध्या हेतु सबको आभार ज्ञापित किया। अन्तत: वरिष्ठतम् कवि सुरेन्द्र शास्त्री जी के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।