जातीय वैमनस्यता को कमजोर करने की मजबूत कड़ी है लोक साहित्य एवं कला
डॉ आमोद कुमार राय ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अनुदानित शोध परियोजना में प्रस्तुत किया यह निष्कर्ष
पूर्वा टाइम्स समाचार

गोरखपुर। लगभग तीन वर्ष पहले उत्तर प्रदेश सरकार के नियोजन विभाग तथा दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के संयुक्त तत्वाधान में एक तीन दिवसीय बृहद संगोष्ठी “पूर्वांचल का सतत विकास : मुद्दे, रणनीति और भावी दिशा” का आयोजन 10 – 12 दिसंबर 2022 में किया गया था। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य पूर्वांचल के विकास का रोडमैप विकसित करना था। तीन दिनों में लगभग पचास से ज्यादा सेशन में विद्वानों, मंत्रियों एवं अधिकारियों की सघन बैठक ने समाज के किसी भी अनिवार्य घटक को नहीं छोड़ा और अनेकों सुझाव प्रस्तुत किए। उक्त संगोष्ठी में सामाजिक और सेवा क्षेत्र में पूर्वांचल की सामाजिक एकता को कैसे मजबूत किया जाए इसपर व्यापक चर्चा हुई। इसी से प्रेरित होकर डॉ राय ने प्रदेश सरकार द्वारा प्रदत शोध अनुदान से लगभग ढाई वर्षों में एक शोध परियोजना पूर्ण की है और उस शोध में यह निष्कर्ष निकाला है कि पूर्वांचल की लोक संस्कृति, लोक गीत और कला ने इस क्षेत्र के सामाजिक एकता को बनाए रखने में महती भूमिका निभाई है। उन्होंने इस क्षेत्र में पाए जाने वाले लोक गीतों, उनकी गायन शैली और विभिन्न अवसरों पर इसके आयोजन के निमित्त एकत्रित होने वाले जनसमुदाय के आधार पर यह बतलाने की कोशिश की है कि लोक कला एवं गीतों के अंदर एक ऐसी अदृश्य शक्ति है जो यहां की जनता के अंदर से जातीय वैमनस्यता को दूर करती है। पूर्वांचल के भौगोलिक एवं सांस्कृतिक पहचान को यहां की कला से जोड़कर देखना और समझना चाहिए। इसके लिए उन्होंने अपने शोध निष्कर्ष को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है जिसका नाम है फोक लिटरेचर एंड आर्ट इन ईस्टर्न यू पी एंड इट्स रोल इन सोशल इंटीग्रेशन।
यह पुस्तक पांच अध्यायों में विभक्त है। इनमें क्रमशः पूर्वांचल की सांस्कृतिक अवधारणा, लोक साहित्य, संस्कृति एवं कला की परिभाषा, प्रकार एवं उनके द्वारा समाज पर डाले जाने वाले विभिन्न तरह के प्रभावों का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक के प्रकाशन से लोक साहित्य के क्षेत्र में कार्य करने वाले शोधार्थियों को बहुत सहायत प्राप्त होगी। हिंदी भाषा में इस क्षेत्र में बहुत काम हुए थे परंतु अंग्रेजी में यह अपनी तरह का पहला शोध अध्ययन है जो लोक साहित्य एवं संस्कृति के सामाजिक प्रभावों पर पर्याप्त प्रकाश डालता है।
पुस्तक के प्रकाशन पर कुलपति प्रो पूनम टंडन ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा है कि इस तरह के शोध कार्य मानविकी में और अधिक होने चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने उच्च शिक्षा में समाजोपयोगी शोध को बढ़वा देने का जो निर्णय लिया है वो इसी तरह के प्रयासों से पूर्ण होता है। डॉ राय ने लोक साहित्य की वास्तविक महत्ता को रेखांकित करने का प्रयास किया है। उनको हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामना।
आमोद कुमार राय: लोक साहित्यों एवं कला में एक अदृश्य चुंबकीय शक्ति है जो जन को एक साथ बिना किसी भी भेद भाव के साथ मजबूती से जोड़े रखता है। यह लोगों की आस्था, विश्वासों एवं मान्यताओं के इर्द गिर्द ही अपना संसार रचता है और लोक कल्याण ही इसका अभीष्ट उद्देश्य है।
इस अवसर पर प्रो अनुभूति दुबे, डॉ सत्यपाल सिंह, आदि उपस्थित रहे।